इस परिवार के लिए ये लॉकडाउन वरदान साबित हुआ है

कोविड -19 को फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के कारण जहां प्रवासी मजदूरों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं एक दशक पहले बिछड़े एक मूक-बधिर युवक को परिजन से मिलवाने में ये लॉकडाउन वरदान साबित हुआ है।

इस युवक को अपने परिजनों से मिलवाने में मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा कस्बे स्थित Sub-divisional magistrate (एसडीएम) office में तैनात रेवेन्यू इंस्पेक्टर विनोद कुमार यादव एवं आयकर अधिकारी युवराज ठाकुर ने अहम भूमिका निभाई है|

यादव को प्रवासी मजदूरों को सेंधवा में रखे जाने के लिए बनाये गये isolation centre का चीफ बनाया गया है, जिसमें प्रवासी मजदूरों को रखे जाने से पहले उनकी स्क्रीनिंग भी हो रही है।

Isolation centre के प्रमुख यादव ने सूत्रों को बताया कि चार अप्रैल को महाराष्ट्र से करीब 500 मजदूर कई सौ किलोमीटर पैदल चल कर उनके isolation centre में सेंधवा पहुंचे थे| उन्होंने इन मजदूरों की स्क्रीनिंग करके उनका नाम एवं पता पूछा, लेकिन ये युवक कुछ नहीं बोला। वो लाइन में चुपचाप खड़ा था।

Laxmi das uravey

उन्होंने कहा कि बार-बार पूछने पर भी जब उसने जवाब नहीं दिया तो उन्हें लगा कि वो बोलने में असमर्थ है। इसलिए उन्होंने उसे पेन एवं कागज दिया, ताकि वो कागज पर अपना नाम एवं पता लिख सके। इसके बाद उसने कागज पर अपना उपनाम ‘उरावे’ लिखा।

यादव ने बताया कि ‘उरावे’ उपनाम के आधार पर उन्होंने लोगों से बातचीत की तो मालूम पड़ा कि मध्यप्रदेश के शहडोल और छत्तीसगढ़ राज्य में ही ये उपनाम लगाया जाता है।

उन्होंने कहा कि इसके बाद आयकर अधिकारी युवराज ठाकुर ने इस युवक का फोटो और उनका (विनोद कुमार यादव) मोबाइल नंबर शहडोल एवं छत्तीसगढ़ के व्हाट्सएप ग्रुपों पर भेज दिया।

यादव ने बताया कि चार-पांच दिन बाद छत्तीसगढ़ के एक पुलिसकर्मी का फोन उनके नम्बर पर आया और उन्होंने बताया कि ये युवक छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के दर्री थानांतर्गत ग्राम स्याहीमुड़ी का निवासी है और 2010 से गायब है।

उन्होंने कहा कि इसके बाद इसके परिवार की खोजबीन शुरू की गई। युवक के परिवार से संपर्क होने पर वीडियो कॉलिंग के जरिए उसकी पहचान कराई गई। वीडियो कॉल में इस युवक के पिताजी इतवार दास ने उसे पहचान लिया और उसका नाम लक्ष्मी दास (22) बताया। युवक ने भी अपने मां-बाप व आसपास के लोगों को पहचान लिया।

यादव ने बताया कि इतवार दास के अनुसार जब लक्ष्मी दास की उम्र करीब 12 वर्ष थी, तब बाहर से काम करने आए मजदूरों के साथ वो कहीं चला गया था और तब से उसका कोई पता नहीं था।

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के चलते कहीं आने-जाने की अनुमति नहीं मिल पा रही थी, लेकिन अपने खोए बेटे से मिलने की चाह में उसके पिता जैसे-तैसे बड़वानी जिले के सेंधवा पहुंचे और isolation centre से अपने बेटे को साथ लेकर घर के लिए रवाना हो गए।

इस युवक के पिता इतवार दास ने बताया कि बेटे के खो जाने के बाद से वो गम में थे। उन्होंने आठ साल तक उसकी बहुत खोजबीन की, लेकिन कहीं पता नहीं चला। इसलिए पिछले दो सालों से ढूंढना बंद कर दिया था। लेकिन अचानक सेंधवा से सूचना मिली तो उनका इंतजार खत्म हुआ और बड़ी मुश्किल से वो लक्ष्मीदास तक पहुंच पाए।

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Geeta Rana

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