नेक काम के लिए धन नहीं मन की जरुरत होती है
धन हो न हो, मन होना चाहिए। मन है तो किसी भी काम में अपनी कंट्रीब्यूशन देने के लिए रास्ते निकल ही आते हैं। कानपुर के ग्वालटोली के नीरज और उनके भाई संजय 350 से ज्यादा लोगों को खाना खिलाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। नीरज कचहरी के पास पकौड़े बेचते हैं और संजय मिठाई की दुकान में काम करते हैं।
लॉकडाउन (lockdown) हुआ और जरूरतमंदों का पेट भरने की जरूरत महसूस हुई तो मोहल्ले के युवकों ने चंदा इक्कट्ठा कर सभी को खाना खिलाने का मन बना लिया। सभी ने आर्थिक रूप से भागीदारी की लेकिन नीरज और संजय इस स्थिति में नहीं थे कि वो भी पैसे से मदद कर पाएं। लेकिन वो हर हाल में अपना योगदान देना चाहते थे।
दोनों भाई प्रतिदिन 350 से ज्यादा लोगों के लिए बना रहे खाना :
समर्पण के साथ सेवा का मन था, इसलिए राह निकल आई। उन्होंने जरूरतमंद लोगों के लिए अपने हुनर का श्रमदान कर दिया। दोनों भाई प्रतिदिन 350 से अधिक लोगों के लिए खाना बना रहे हैं, वह भी निशुल्क।लॉकडाउन (lockdown) से पहले नीरज कचहरी के बाहर ठेला लगाने की तैयारी शुरू कर देते थे और संजय काम पर जाने की। अब दिनचर्या बदल गई है। जहां दोस्तों ने खाना बनवाने की व्यवस्था की है, दोनों उस जगह पहुंच जाते हैं। सुबह से भोजन बनना शुरू होता है जो शाम तक चलता रहता है।
नेक काम में सारे दोस्त पैसा लगा रहे :
नीरज कहते हैं, हम लोग संयुक्त परिवार में रहते हैं। राशनकार्ड है, इसलिए खाद्यान्न मिल गया है। इतने नेक काम में सारे दोस्त पैसा लगा रहे हैं तो हम घर में कैसे बैठते। इसलिए, दोनों भाई वहां खाना बनाने लगे। खाने का मेन्यू कभी एक सा नहीं होता। हर रोज उसे बदल देते हैं। कभी कढ़ी-चावल, कभी वेज बिरयानी, कभी पूड़ी-सब्जी तो कभी तहरी। दोनों ने कहा कि जब तक दोस्तों की रसोई चलेगी, हमारा श्रमदान चलेगा।
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