जवान के बाद अब देश का किसान भी आया आगे
इरोड के 38 वर्षीय किसान GM Mathesh का कहना है कि COVID-19 के प्रकोप और उसके बाद के लॉकडाउन के मद्देनजर, उनके पास दो ऑप्शन थे| एक कि खुद के व्यवसाय से ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करना या उदार होना और एक वक़्त के खाने के लिए संघर्ष कर रहे गरीबों का सपोर्ट करना। और उन्होंने दूसरा ऑप्शन चुनना ज्यादा जरुरी समझा |
तीसरी पीढ़ी का किसान Mathesh, इरोड के एंथियूर तालुक के आलमपलायम गाँव का निवासी है। वो कर्नाटक में उदेरपालयम गांव में 10 एकड़ के खेत के मालिक हैं। इस सीज़न के दौरान, उन्होंने गोभी, लहसुन, चुकंदर, टमाटर, मिर्च और भिंडी की खेती की थी, जिनकी कटाई मार्च के तीसरे सप्ताह में की गई थी। सूत्रों से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि उन्हें पता चला कि उनके गाँव के कई दिहाड़ी मजदूर लॉकडाउन के दौरान जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि वो कमाने में सक्षम नहीं हैं। हालाँकि उन्हें राशन की दुकानों से चावल और दाल मिलती है, लेकिन एक स्वस्थ भोजन सब्जियों के बिना अधूरा है। इसलिए उन्होंने अपने सभी उत्पाद उन्हें मुफ्त में देने का फैसला किया।
10 से 14 अप्रैल के बीच, Mathesh ने 800 से ज्यादा गरीब परिवारों को मुफ्त में लगभग 8 टन सब्जियां वितरित की हैं। उन्होंने कहा कि उनका परिवार और दोस्त इन सब्जियों के थैलों की आपूर्ति करने के लिए घर-घर जाते हैं। उन्होंने सामाजिक भेद मानदंड के पालन का पूरा ध्यान रखा था और साथ ही वो सुरक्षात्मक गियर से लैस थे। इसके अलावा, उन्होंने खेतों के पास बसे आदिवासियों को 100 से ज्यादा बैग वितरित किए हैं।
हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने राहत देने के लिए उन्हें जिला प्रशासन के साथ को-ऑर्डिनेट करने का आदेश दिया है, Mathesh ने कहा कि उन्होंने मुफ्त वेजी की डोर-टू-डोर आपूर्ति बंद कर दी है। उन्होंने कहा कि वो स्थानीय अधिकारियों के साथ को-ऑर्डिनेट करने और जरूरतमंद लोगों की पहचान करने और उन्हें आवश्यक आपूर्ति प्रदान करने की योजना बना रहे हैं।
Mathesh के लिए यह नि:स्वार्थ काम करना आसान नहीं था। हर दिन वो ट्रक में वेजीज़ को ले जाने के लिए 110 किमी की ट्रैवेलिंग करते हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण, उन्हें चौकियों को पार करने और परिवहन को आसान बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए उन्होंने सरकार से अनुमति पत्र के लिए अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा कि इस सीज़न के उनके सभी उत्पादन पर बाजार दर से 10 लाख तक का खर्च आएगा और हर दिन वो पचास हजार तक खर्च करेंगे जिसमें परिवहन और खेतों में मजदूरों का भुगतान शामिल होगा। लेकिन उन्होंने मुनाफे पर समझौता करने का फैसला किया क्योंकि उनके मुताबिक़ ये समय इसके लिए नहीं है।
उनका मानना है कि एक समुदाय के रूप में हम अपने लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अपनी ओर से इस कठिन समय (COVID-19) को पार कर सकते हैं। उन्हें उम्मीद है कि लॉकडाउन खत्म होने तक वो जरूरतमंदों को मुफ्त सब्जियां दे पाएंगे | उनके इस नेक काम को हमारा सलाम |
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