Chandrabhan पिछले 30 साल से बाँट रहे हैं लोगों को उनके घर का पता
इंसान के अंदर कुछ करने का जूनून हो तो उम्र भी उसके आड़े नहीं आती| और इसका सबसे अच्छा उदहारण हैं 73 साल के Chandrabhan| डाक एवं तार विभाग में टेलीग्राफर की नौकरी से रिटायर्ड होके बाद भी उनका मिशन आज भी जारी है|
नौकरी के दौरान खुद को होने वाली परेशानियों को सोचकर उन्होंने दूसरों को इन परेशानियों से बचाने के लिए अपने दोस्त मूलचंद सैनी के साथ मिलकर लोगों को मकानों और दुकानों के आगे नाम लिखवाने के लिए जागरूक करना शुरू किया| Chandrabhan पिछले 30 सालों से साइकिल पर घूम-घूम कर लोगों को उनके घरों और दुकानों के बाहर उनके नंबर प्लेट लिखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं|
वो शहर के अलग-अलग स्थानों के साथ-साथ हरिद्वार, कटरा, कनखल और दिल्ली आदि स्थानों में भी अपने खर्चे पर अब तक मकानों और दुकानों के नंबर लिखवाने के सन्देश देने वाले सौ से ज्यादा बोर्ड लगवा चुके हैं| नौकरी करने के दौरान घरों के बाहर लगी नेमप्लेट पर पूरा पता नहीं लिखा होने की वजह से होने वाली परेशानी भुगत चुके Chandrabhan का कहना है कि लोग घर कि खूबसूरती को ध्यान में रखकर उसपर लाखों रुपये तो खर्च कर देते हैं, लेकिन बाहर प्लाट नंबर नहीं लिखवाते| ऐसे में किसी को भी पता ढूंढ़ने में परेशानी होती है| इसी वजह से उन्होंने खुद के खर्चे पर प्लाट नंबर और पता लिखवाना शुरू किया| इससे प्रेरित होकर कई लोग इस अभियान से जुड़ने लगे हैं|
Chandrabhan का मानना है कि लोग इसे मामूली बात समझते हैं, लेकिन कभी-कभी इस छोटी सी गलती का बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ता है| मकान पर पूरा पता न लिखा होने कि वजह से कई बार जरुरी पत्र, रजिस्ट्री, इंटरव्यू कॉल लेटर सहित कई इम्पोर्टेन्ट पेपर लोगों तक सही समय पर नहीं पहुँच पाते हैं| मूलचंद सैनी का कहना है कि शुरुवात में लोगों ने उनके इस काम का मज़ाक उड़ाया, लेकिन Chandrabhan अपनी धुन के पक्के निकले और उन्होंने अपना काम जारी रखा|
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