BSF से रिटायर्ड Jagat Singh हैं ‘ग्रीन एम्बेसडर’ ऑफ़ उत्तराखंड

1974 में, Jagat Singh Choudhary  अपने छोटे से गांव कोट मल्ला में रुद्र प्रयाग की पहाड़ियों में 4,500 फीट ऊपर अपनी छुट्टियां बिता रहे थे। उन्होंने एक महिला की घटना के बारे में सुना, जो गंभीर रूप से उस वक़्त घायल हो गयी थी, जब वो दैनिक प्रयोजनों के लिए दूर पहाड़ी पर जलाऊ लकड़ी और चारा इकट्ठा करने के लिए गई थी। आस-पास के इलाकों और गांवों में वनों की कटाई के कारण महिलाओं का जीवन दयनीय हो गया था। तबJagat Singh ने मिक्स्ड फॉरेस्ट्री के उद्देश्य से गाँव के बाहरी इलाके में अपनी बंजर भूमि का उपयोग करने का फैसला किया ताकि आसपास की जगहों की महिलाओं को इतनी दूर नहीं जाना पड़े।

Jagat Singh Chaudhary
Photo : jagatsinghjanglee.blogspot.com

1990 में BSF (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्सेज) से रिटायरमेंट के बाद, Jagat Singh Choudhary ने अपना पूरा जीवन 1.5-हेक्टेयर भूमि को नवीनीकृत करने के लिए समर्पित कर दिया, जिसे उन्होंने खाली छोड़ा था। ये उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण और भक्ति है कि आज बंजर भूमि लगभग 56 विभिन्न प्रकार के पेड़ों के साथ प्रचुर मात्रा में है। जिस स्थान पर महिलाओं को पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी, वो अब खुद पानी का उत्पादन कर रही हैं। ये जंगल, वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए एक घर बन गया है।

Jagat Singh Chaudhary
Photo : jagran.com

मणिपुरी ओक और देवदार जैसे पेड़ों की 26 प्रजातियां जैसे तेलीया और नमचा जैसे सदाबहार घास, सलेम पंजा (दक्तेलोरहिजा हैगिरिया), कुथ (सौसुरिया लप्पा), समान या तगर (वेलेरियाना हार्डविकि), गुलाब और लिली जैसे फूलों की 23 दुर्लभ औषधीय वनस्पतियाँ। और बरबटी बीन जैसे पर्वतारोहियों को उनके मिक्स-फॉरेस्ट्री में पाया जा सकता है। पेड़ों को 7,000-8,000 फीट की ऊंचाई पर लगाया जाता है, जो कोट मल्ला में बहुत दुर्लभ है। उन्हें अपनी एक बार बंजर पड़ी भूमि पर मिक्स-फॉरेस्ट्री करते हुए लगभग 40 साल हो गए हैं| वो गड्ढों की खुदाई करके अपनी जैविक खाद भी बनाते हैं, जिसे उन्होंने ‘खुदाई यंत्र’ (digging instrument ) नाम दिया| वो खेती के उद्देश्यों के लिए पारंपरिक तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। अब उन्हें मिक्स-फॉरेस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए अपने ही बेटे और बाकी ग्रामीणों का समर्थन मिल रहा है।

Jagat Singh Chaudhary
Photo : newspost.live

Jagat Singh Choudhary  के काम को पहली बार पहचान मिली जब आईएएस आर एस टोलिया ने जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में उनके प्रयासों पर प्रकाश डाला और उनका जंगल उत्तराखंड के लिए कृषि व्यवसाय का मॉडल बन गया। 1994 में एक स्कूल समारोह में भाग लेने के दौरान, उन्हें अपने शुभचिंतकों द्वारा ‘जंगल’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने “परियावरन प्रेमि” और “हिम गौरव” पुरस्कार जीते हैं। उन्होंने 1998 में प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी वृक्षमित्र पुरस्कार प्राप्त किया था|

‘Green Ambassador’ of Uttarakhand
Photo : hindi.krishijagran.com

यहां तक कि एक बार एक लोकप्रिय क्विज शो -कौन बनेगा करोड़पति में भी उनसे सवाल पूछे जाने पर कि वो लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं के जवाब में उन्होंने कहा था कि बायो-डाइवर्सिटी को बढ़ावा देने के लिए अपने क्षेत्र में mixed-forestry का अभ्यास करें क्यूंकि किसी ने सच ही कहा है कि “जहां चाह, वहां राह”।

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Geeta Rana

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