ये motivational story पढ़कर आप भी कहेंगे ‘लव यू इंडियन आर्मी’

मत पूछ कैसे गुजर रही है जिंदगी, उस दौर से गुजर रहा हूं जो गुजरता ही नहीं। हरियाणा के नारायणगढ़ के बड़ा गांव के रहने वाले Razzaq Mohammed पर ये पंक्ति एकदम सटीक बैठती है। आतंकवादियों से लड़ते हुए गोली लगने से Razzaq दिव्यांग हो गए। अलबत्ता जिस सपने को साकार करने के लिए वो सेना का हिस्सा बने, वो सपना गोली लगने की वजह से टूट गया और अब आतंकवादियों को मार गिराने के जुनून के आड़े आ गई दिव्यांगता।

लेकिन जिनके दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो वो परिस्थितियों के मोहताज नहीं होते और 40 वर्षीय Razzaq Mohammed ने ये साबित कर दिया। आज वो दिव्यांगता को मात देकर युवाओं को सेना में भर्ती के गुर सिखा रहे हैं, ताकि देशभक्ति जिंदा रहे। दरअसल, रज्जाक मोहम्मद की 2002 में पोस्टिंग अनंतनाग के काजीकुंड में हुई थी। पहले वो 6 राजपुताना राइफल में थे, फिर उनकी पोस्टिंग 9 राष्ट्रीय राइफल मिशन में कर दी गयी। उस समय आतंकवादियों का खात्मा करने के लिए ऑपरेशन पराक्रम चल रहा था। 23 फरवरी 2002 को उन्हें सूचना मिली थी कि एक मकान में आंतकवादी छुपे हुए थे।

Razzaq Mohammed

उनके मुताबिक़, कमांडर के आदेश पर एक जेसीओ सहित 10 जवान आंतकवादियों का सामना करने के लिए निकले थे। मकान का घेराव करने के लिए एक घंटा फायरिंग चली। वो लाइफ जैकेट पहनकर पॉजीशन पर थे कि एक आंतकवादी उनकी तरफ से भागने लगा। उसने कई गोलियां चलाई, उनमें से दो गोलियां लाइफ गार्ड जैकेट के साइड से अंदर लग गई और रीड़ की हड्डी टूटने के बाद वो पैरालाइज हो गए। अब खुद बेशक वो अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, लेकिन युवाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहिम में लगे हुए हैं।

कश्मीर में घर के अंदर घुसे आतंकवादियों का भले ही उन्होंने डटकर सामना किया। लेकिन दुश्मन की गोलियां लगने से पैरालाइज के चलते सेना ने उन्हें बोर्ड आउट कर दिया। इसके बाद मन में टीस जरूर रही लेकिन रज्जाक ने अपने मन में ठान लिया कि वो हर हाल में सेना का हिस्सा रहेंगे। लिहाजा Razzaq ने युवाओं को सेना में भर्ती कराने का सपना अपनी आंखों में संजोया ताकि उनके माध्यम से वो सेना में खुद को देख सकें|

Razzaq Mohammed

Razzaq Mohammed के खून में ही देशभक्ति भरी है। बतौर रज्जाक भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय से वो यहीं रहते थे। उस समय उनके पूर्वजों ने अपने देश यानी भारत में ही रहना चुना था। पहले कोई सेना में नहीं था। जब वो 9th क्लास में आये, तो पड़ोस में रहने वाले सेना के जवान गुलजार मोहम्मद से सेना में जाने के लिए प्रेरित हुए।

Razzaq ने अपने भाई के बेटे आदिल को गोद लिया। अब वो अपने परिवार से आदिल व भाई के बेटे आसिम को सेना में जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्हें सेना से जुड़े हर कार्यक्रम में ले जाते हैं ताकि देशभक्ति की भावना उनमें कूट-कूटकर भर सके और उन्हें सेना का हिस्सा बना सकें। इसके अलावा वो गांव के बच्चों व युवाओं में भी अपने संघर्ष की कहानी से जोश भर रहे हैं|

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Geeta Rana

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