1000 से भी ज़्यादा बीमार-गायों की माँ बनी भारत घूमने आई यह German-tourist
1978 में एक औरत tourist बनकर India आई, लेकिन उसे नहीं पता था ज़िंदगी उसके लिए क्या लेकर खड़ी है| कुछ सालों बाद, Friederike Irina Bruning आज भी यहीं है और 1200 बीमार, चोटिल और अनाथ गाईयों को बचा चुकी हैं| उनकी खुद की Surbhai Gauseva Niketan नाम की गौशाला है|
59 साल की इस औरत का कहना है कि जब वा टूरिस्ट बनकर भारत आई तब उसे लगा कि ज़िंदगी में आगे बादने के लिए सभी को एक गुरु की ज़रूरत है|
इसलिए गुरु की तालाश में वह Radha Kund, Mathura गयी| जहाँ उनके एक पड़ोसी ने उन्हें एक गाय खरीदने के लिए कहा| Bruning ने वैसा ही किया और गाय के उपर लिखी कई किताबें खरीद कर हिन्दी सीखी| इसी के बाद से उनकी ज़िंदगी बदल गयी|
उन्होने देखा कि जब गाय बुड़ी होकर दूध देना बंद कर देती है तो लोग उसे छोड़ देते हैं| धीरे-धीरे गायों के लिए उनके मन में बहुत प्रेम आ गया और उन्होनें एक आश्रम खोल लिया|
Sudevi Mataji के नाम से प्रसिद्ध Bruning के पास आज राधा-कुंड में बहुत सी गाय और बछड़े हैं| वह उनकों अपना बच्चों की तरह मानती हैं|
अपनी 3,300 sq. yard की गौशाला में वह जानवरों के खाने और दवाइयों का पूरा ध्यान रखती हैं| जगह कम होने के बावजूद वह आश्रम के बाहर छोड़े गये चोटिल और बीमार जानवरों को भी प्यार से देखती हैं|
इस काम के लिए उन्हें local authorities से कोई मदद नहीं मिली है और पूरा खर्च वह Berlin में अपनी प्रॉपर्टी के rent से निकालती हैं| पहले उनके पिताजी उन्हें पैसा भेजा करते थे, लेकिन उनके बूढ़े और बीमार होने की वजह से अब Bruning हर साल खुद वहाँ जाती हैं|
Bruning की माने तो हर महीने उन्हें दवाई, खाना और 60 workers की salary का खर्च 22 लाख रुपये चाहिए|
सिर्फ़ financial problems ही नहीं और बातें भी उनके काम को कठिन बना रही हैं| उन्हें अभी तक Indian government की तरफ से long-term visa भी नहीं मिला है और हर साल उन्हें इसे renew कराना पड़ता है|
उनका कहना है कि वह Indian nationality नहीं ले सकती, वरना Berlin से आने वाली उनकी rental income बंद हो जाएगी| उनके पिता India की German Embassy में काम करते थे| उनके माता-पिता की income ही है जो उन्होनें इस गौशाला में लगाई है|