Eco-friendly sanitary pads बनाकर बच्चों ने जीता Rs.75,000 का cash prize
ऐसे देश में जहां ज्यादातर महिलाएं अपनी पीरियड्स के दौरान sanitary pads का उपयोग नहीं करती हैं, यह विडंबनात्मक है कि सैनिटरी नैपकिन कई किलो के हिसाब से non-degradable कचरा उत्पन्न करते हैं जो कि हमारे वातावरण को प्रदूषित करता है| Menstrual pollution अब एक वास्तविक संकट है जिसे केवल एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या के रूप में इलाज के द्वारा ही बदला जा सकता है|
AC Nielsen की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 355 मिलियन menstruating स्त्रियों में से केवल 12% sanitary pads का इस्तेमाल करती हैं जबकि बाकी unsanitized cloth, अख़बार या husk sand का इस्तेमाल करती हैं| जिससे कि महिलाओं के स्वास्थ को जोख़िम पहुँचता है|
‘Periodofchange’ के अनुसार ‘Kachra’ प्रॉजेक्ट के अंतर्गत एक campaign शुरू किया गया, जिससे पता चला कि एक औसत महिला हर साल लगभग 150 किलोग्राम non-biodegradable menstrual waste generate करती है| क्योंकि 90 प्रतिशत sanitary pads में प्लास्टिक होता है, इसलिए इसी बनने वाला कचरा पर्यावरण को दूषित करता है|
इस पर्यावरण संबंधी खतरे के और ज़्यादा फैलने के प्रयास में, दो छात्रों Niveda R और Gowtham S जो वर्तमान में कुमारगुरु कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी (KCT) में fashion technology की पढ़ाई कर रहे हैं, ने पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी नैपकिन का आविष्कार किया है। इसके लिए उन्होंने प्रतिष्ठित Chhatra Vishwakarma Award और India Innovation Initiative (i3) 2017 भी जीता है|
उन्होंने अपने आविष्कार के लिए Kenaf fibre का उपयोग किया – एक ऐसा संयंत्र जिसे पूरे भारत में 12 राज्यों में उगाया जाता है| उनके आविष्कार के लिए पौधे उनके college campus में भी 11 सेंट के क्षेत्र में उगाए गये थे|
Kenaf fibre की प्रयोज्यता में सुधार करने के लिए, स्टूडेंट्स ने इसे सबसे पहले पेड़ों से निकाला और सैनिटरी नैपकिन तैयार किया जो कि पूरी तरह से biodegradable हैं और बिल्कुल कचरा नहीं छोड़ते हैं| स्टूडेंट्स ने Rs.75,000 का cash prize, i3–Icreate Award और i3-SIDBI Start-UP Mitra award जीता|